बुधवार, 20 मई 2015

गुरुदेव के भजन 350 (Gurudev Ke Bhajan 350)



दरबार मेरे बाबा का रहमत का  खज़ाना लगता है 
सतगुरु के वचन सुनोगे तो ज़न्नत का तराना लगता है 

आती है याद सतगुरु की पलको के जाम छलकते है 
दरबार रूहानी जन्मो से जाना पहचाना लगता है 

सतगुरु की पावन चरणधूलि मस्तक पर जबसे लगाई है 
सतगुरु के सिवा इस दुनिया में सब कुछ बेगाना लगता है 

गुरु गंगा में इस्नान की मैने तो युक्ति पाई है 
आसान मुझे तबसे अपनी मंजिल का पाना लगता है


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