शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

क्यों दूर है




कभी दूर रहके भी पास थे अब पास रहके भी दूर है
जाने क्यों हुए ये फासले यही सोचके मजबूर है


                     क्या ग़िला करें किस बात पर
                      क्यों निगाह तुमने फेर ली

किस बात पर नाराज़ हो
क्यों हमसे बाज़ी खेल ली

                     क्यों निगाह तेरी बदल गई
                      हुआ ऐसा कैसा कसूर है


दिल मेरा तड़प रहा यहाँ
वहाँ तुम भी तो हो परेशां

                  दिल ज़ख्म खाए पड़ा हुआ
                किसको दिखाएँ हम निशां

अब मान  जाओ कहा मेरा
माफ़ करदो हुआ जो कसूर है 

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