शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

कैसे करूँ बयां




कैसे करूँ बयां ग़मे जिंदगी आज
शहरे वफ़ा के लोग घूरे है मुझे आज

                   माना कि जिंदगी यूँ ही भटकेगी दर बदर
                   तुम होश में तो आओ क्यों बेवफ़ा हो आज

आ जाओ तो लिखूँ मैकोई गीत या ग़ज़ल
हर गीत कर रहा है तुम्हारे बदन पे नाज़

                अाया हूँ दर्द की हर हद से गुज़र कर
                छालों  पे पाँव के मरहम लगाओ आज

कहाँ तक जलाऊँ दीप मज़ारों के आसपास
अब रोशनी करो मेरी जिंदगी में आज

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