Meena's Diary
मंगलवार, 5 जनवरी 2016
तुम कौन हो
तुम कौन अरे इस जीवन में
इतनी व्याकुलता घोल रही
अपने इस मौन निमंत्रण से
कर इस अंतर का मोल रही
स्वांसो की सुरभि तुम्हारी ले
भावों की कलियाँ महकी थीं
वह खिलती कलियाँ मुरझाईं
सुमनों का सुरभित दान नहीं
वह परिमल और पराग नहीं
वह सौरभ और मुस्कान नहीं
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