Meena's Diary
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016
विधाता ने रचा
विधाता ने रचा है
उसे प्रेम से
कल्पना से
कामना से
फुर्सत में
वह मुझमे है
उसकी हँसी
कुसुमित होती है
पलाश में ,अमलतास में
हेमंत में ,वसंत में
बढ़ती जाती है
अगाध की ओऱ
2 टिप्पणियां:
renuabhey
11 फ़रवरी 2016 को 2:03 am बजे
सुन्दर |
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Meena's Diary
12 फ़रवरी 2016 को 6:43 am बजे
thanks
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सुन्दर |
जवाब देंहटाएंthanks
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