Meena's Diary
शनिवार, 20 फ़रवरी 2016
पिया न आये
न जाने क्यों पिया न आये
मोरा मनवा क्यों घबराये
न भाये मोहे बदरिया काली
रहती जो पिया संग मतवाली
कैसे भेजूँ संदेश न जानू
क्या लिखूँ पाती न जानू
इक विरहन नदिया के किनारे
जाने क्यों प्यासी रह जाए
दीपशिखा की प्रज्वलित लौ
अनायास ही न बुझ जाए
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