शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

ये कहाँ का दोस्ताना

न थी नसीब में मुहब्ब्त उजड़ा ये आशियाना
जो कभी हुआ था अपना वही बन गया बेगाना

मेरे ख्वाबों को सजाकर मुझे इस कदर  से लूटा
उजड़ा मेरा चमन भी हर सपना मेरा टूटा
अब मै कहाँ पे जाऊँ मेरा कोई न ठिकाना

तेरी हर ख़ुशी की खातिर मैने अपना सब गंवाया
मिला क्या तुझे मुझे यूं मिटाके ही चैन आया
तेरे हर सवाल पर है मेरा दिल बना निशाना

कुछ न थी खबर मुझे भी टूटेगा दिल यूँ मेरा
तेरे प्यार के सहारे बसाया था घर जो मेरा
ये कहाँ की दोस्ती है ये कहाँ का दोस्ताना
@मीना गुलियानी

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