शनिवार, 21 मई 2016

मिल गई मंजिल मुझे

ऐ  मेरे दिल तू सम्भल जा मिल गई मंजिल मुझे
यूं न रह रह तड़प अब है सुकूँ हासिल मुझे

गम है तो हमराह भी किश्ती है मल्लाह भी
क्यों मै लहरों से डरूँ मेरे संग है नाखुदा भी
अब किनारे लाज़मी है पहुँचना उस पार मुझे

भंवर न कोई राह में रोड़ा अब  बन पाएगी
किश्ती प्यार की  अपनी तो चलती  चली जायेगी
अब समुन्द्र का ये पानी कर सके न गाफिल मुझे
@मीना गुलयानी

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