शनिवार, 28 मई 2016

सुनाती है तुमको ये दास्तां

खुली वादियाँ सुहाना समा
सुनाती है तुमको ये दास्तां

छाई है देखो हरसू बहार
गुलों पे  देखो आया निखार
होने लगी अब उमंगे जवां

बागों में पंछी घूम रहे है
भँवरे गुलों संग झूम रहे है
खुशियाँ लुटाती  हुई वादियाँ

झरनों का पानी लगा आज बहने
सुनो आज मेरी लगी हूँ मै कहने
करो माफ़  मेरी गुस्ताखियाँ

उठाओ लुत्फ़ तुम इस जिंदगी का
मिलेगा न मौका तुम्हें  इस ख़ुशी का
करें न  ज़माना  तुम्हें बदगुमाँ
@मीना गुलियानी 

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