शनिवार, 11 जून 2016

अंधियारा और जीवंतता

रात तो अथाह अंधियारा है 
सुबह की किरणो से है जीवंतता 

तुम्हारे चेहरे पर शान्ति ऐसी है लगती 
मानो आँखों में गरजती हो मौन क्रान्ति 

वो क्षण जो स्वछन्द  प्रणय का था प्रतीक 
वो एक भ्रम बना हो गया स्वयं ही ओझल 

तुम महज एक बदन ही नहीं 
एक एहसास भी हो निश्छल 
@मीना गुलियानी 

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