रविवार, 19 जून 2016

भूली बिसरी याद

जब जिंदगी में आँख खुली 
पिता को मैंने पास पाया 
एक धुंधला सा चेहरा  वो 
फिर मुझे है याद आया 
उठाया जब गोद में उसने 
पहली वो पहचान हुई 
फिर अंगुली पकड़कर चलना सिखाया 
मेरी नन्ही जान के लिए 
बने वो भगवान समान 
निश्चिन्तता थी मन के भीतर 
मीठी बयार थी बहती 
दिनचर्या को मस्ती से जीना सिखाया 
अब किसी पगडण्डी पर पैर नहीं कांपते 
ऊबड़ खाबड़ ज़मीन पर कदम नहीं लड़खड़ाते 
लफ्ज़ नहीं कांपते ,मन नहीं घबराता 
ऐसा मुझे जीना सिखाया 
कोई चाहत अधूरी नहीं मन में 
ऐसा निर्मल ज्ञान कराया 
पिता बने मेरे लिए बरगद की छाया 
@मीना गुलियानी 

3 टिप्‍पणियां: