गुरुवार, 16 जून 2016

दो मसले

बस ये दो मसले 
जिंदगी भर हल न हुए 
न नींद पूरी हुई 
न ख्वाब मुकम्मल हुए 
वक्त ने कहा कि काश 
थोड़ा और सब्र होता 
सब्र ने कहा कि काश 
थोड़ा और वक्त होता 
बचपन में पैसा ज़रूर कम था 
पर उसमें बहुत दम था 
अब पास में महंगा मोबाइल है 
पर गायब वो बचपन की स्माइल है 
ऐसी बेरुखी देखी है हमने 
कि लोग आप से तुम तक 
तुम से जान तक और 
जान से अंजान बन जाते है 
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें