मंगलवार, 13 सितंबर 2016

तुम बिन जिया उदास है

तुम बिन जिया उदास है
ये कैसी अमित प्यास है

तरुवर अब मुरझाने लगे हैं
गीत मुझे भूल जाने लगे हैं

होठों से हँसी जो तूने चुराई
कबसे निंदिया हुई है पराई

दिल का मेरे चैन उड़ा है
मन का मयूरा व्याकुल हुआ है

पंछी भी न गाये तराने
फूल भी अब लगे शर्माने

भाये न कोयल मतवाली
झूमती है जो डाली डाली

चातक स्वाति जल को चाहे
पी पी की वो रट लगाए

जाने कब बरसेंगे मेघा
कब आके वो जी हर्षाये

बागों में वो सावन लौटे
मन का मयूरा  फिर से गाये

मन मेरा भी झूमे नाचे
मन की उदासी दूर भगाये
@मीना गुलियानी


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