शनिवार, 10 सितंबर 2016

मोसो रह्यो न जाए

तुम बिन मोसो रह्यो न जाए
विरह की अग्नि बहुत जलाए
तुम बिन धीरज कौन बंधाये

प्यासी अखियां नीर बहाती
तुम बिन व्याकुल कल न पाती
बरखा बैरन मोहे न सुहाए

कब लोगे आके सुध मेरी
प्रीतम काहे इतनी देरी
मन पंछी काहे अकुलाये
 @ मीना गुलियानी 

2 टिप्‍पणियां:

  1. प्रीतम , विरह - विरह आस लगाए
    बहुत सुंदर

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  2. कब लोगे आके सुध मेरी
    प्रीतम काहे इतनी देरी
    मन पंछी काहे अकुलाये.............unbelievable

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