गुरुवार, 22 सितंबर 2016

वो सुबकती रही

सागर किनारे पड़ी रेत पर वो सुबकती रही

लहरें उसके पास आईं दिलासा देके लौट गईं

उसकी हिचकियाँ पूरी रुकी नहीँ थम गई

सहसा ऐसा लगा उसका मौन क्रंदन शांत हुआ

अचानक प्रलय सा आया आवेग कुछ थम गया

उसने पलटकर मुँह फेरा तो उसकी आँखे वीरान थी

उसके होंठ कुछ कहने के लिए कम्पकंपा रहे थे

हाथों की मुट्ठियाँ बाँधे वो कुछ सोच रही थी

अचानक कुछ निर्णय लेकर वो आतुर हो उठी

प्रतिशोध लेने को उसकी बाहें जोश से भर उठी

लक्ष्य की ओर उसके सधे पाँव बढ़ते जा रहे थे

हर पीड़ा का समाधान उसने जैसे खोज लिया

मन ही मन उसने अपने विरोधी को परास्त किया

अपने मनोबल इच्छाशक्ति को जागृत किया

अब वो समाज के ठेकेदारों के खिलाफ और

समाज की हर बुराई कुरीतियों  के खिलाफ

बुलन्द आवाज में विरोध करने में सक्षम थी

एक अबला अब सबला में परिवर्तित हो चुकी थी
@मीना गुलियानी 

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