बुधवार, 7 सितंबर 2016

जां किसी की जा रही है

जिंदगी की रफ्तार बढ़ती जा रही है
लगता है जैसे जां किसी की जा रही है

लम्हा लम्हा कट रही है जिंदगी
लगता है फिर सांस जैसे थम रही
जिस्म से रूह निकलती जा  रही है
घड़ी लो मौत की अब आ रही है

सिर्फ एहसास बनती जा रही है
चिता यादों की सजती जा रही है
दुआ लब से फिसलती जा रही है
शमा जलती  पिघलती जा रही है

कुरेदो तुम न बुझती हुई चिंगारी को
धीमे से सुलगते जा रहे अंगारो को
न देख पाओगे तुम अब हाल मेरा
इक शमा थी जो बुझती जा रही है
@मीना गुलियानी 

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