सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

मन की बगिया रीती रही

सारी रात मेघ बरसता रहा
पर  मन की बगिया रीती रही
दिल की कलियां खिल न पाईं
बगिया प्रेम पाने को तरसती रही

सूर्य की किरणें आईं धरा पर
किन्तु कुमुदिनी खिल न सकी
चन्द्र का डोला उतरा गगन से
धरा फिर भी उससे अछूती ही रही

प्रेम का स्नेहिल स्पर्श उसको न मिला
उसका मन रहा बुझा बुझा अधखिला
भँवरे फूलों पे आके मंडराने लगे
मस्ती भरे गीत उनको सुनाने लगे

कलियां फिर भी उदासी लिए मन में
सिमटी रहीं पूरी खिल न सकी
प्रेम का ज्वार उन पर उतर सा गया
मौसम आया था जो वो गुज़र सा गया

गीत मौसम ने गाये सुहाने मगर
फूलों को न  भाये मगर उनके सुर
वो गम के आँसू पिए ओठों को सिए
 बूँदे आँसू की ओस बनके बिखरती रही
@मीना गुलियानी

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