मंगलवार, 15 नवंबर 2016

घर से बाहर निकलना पड़ेगा

जिंदगी एक किराये का घर है एक न एक दिन निकलना पड़ेगा
मौत जिस वक्त आवाज़ देगी घर से बाहर निकलना पड़ेगा

शाम के बाद होगा सवेरा देखना है अगर दिन सुनहरा
पाँव फूलों पे रखने वालो एक दिन काँटों पे चलना पड़ेगा

ढेर मिट्टी का हर आदमी है होना मरने पे सबका यही है
या ज़मी में समाधि बनेगी या चिताओं में जलना पड़ेगा

चन्द लम्हे ये जोशे जवानी चार दिन की है ये जिंदगानी
ऐ पिया शाम तक देख लेना चढ़ते सूरज को ढलना पड़ेगा
@मीना गुलियानी 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें