रविवार, 6 नवंबर 2016

दामन छुड़ाया न करो

आज दिल फिर मिलने को बेताब है

क्या जाने कब हो उनसे इन्तेखाब है

तेरी नज़रों में न जाने छुपी क्या बात है

जाने कितने छिपे दबे हुए से राज़ हैं

दिल उन सबको जानने को बेकरार है

तेरी धड़कनो में भी इक मधुर गीत है

इक मीठी सी धुन है इक संगीत है

तुझसे मेरे मन को मिलती राहत है

हर पल तेरे ही आने की तो आहट है

 खिड़की क्यों तेरे नाम से बज उठती है

हवा भी बार बार तुझे पुकार उठती है

झुककर ये हवा तुझे सलाम करती है

फूलों की महक भी तुझे छूकर उड़ती है

भँवरों की टोलियाँ करती हैं अठखेलियाँ

तुझसे ही वो करती रहती हैं ठिठोलियाँ

वरना मेरे सामने तो कभी आती नहीँ

अपना मुँह छिपाती हैं नज़र आती नहीँ

तुम इक पल भी कहीँ दूर जाया न करो

दिल लगता नहीँ दामन छुड़ाया न करो
@मीना गुलियानी 

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