बुधवार, 9 नवंबर 2016

हसरतों के सोग की रात

कैसे मैं भुला पाऊँगा अपनी वो मुलाक़ात की बात
हँसते हँसते ही कट जाती थी मेरी हर इक रात

                         तेरी आँखों से की जाम पिए थे मैंने
                         तेरे रुखसार पे की वादे किये थे मैंने
                         रंग और नूर में वो भीगी सी रात

तेरे ही प्यार से जीने का सलीका सीखा
कैसे हर चोट में मुस्काएँ तरीका सीखा
सिलसिला प्यार में मिट जाने की रात

                          तुमसे मिलने में कई बार तो नाकाम हुए
                          कभी मिल भी लिए तो यूँ ही बदनाम हुए
                          शोक में डूबी हसरतों के सोग की रात
@मीना गुलियानी 

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