मंगलवार, 31 जनवरी 2017

समन्दर कतरा बनके बह गया

लम्हा लम्हा करके ये साल भी यूँ ही गुज़र गया
इतनी शिद्दत से तुम्हें चाहा वो वक्त किधर गया

तभी हम जान पाए उसकी कीमत को भी
वो पल जो आँख के कतरे सा छलक गया

जीना था खुशगवार जब संग वो पल गुज़ारे
वो लम्हा तो मेरी यादों में कैद होके रह गया

कितना अच्छा होता जो संग रहती हमारी आशाएँ
इच्छाओं का वो समन्दर कतरा बनके बह गया
@मीना गुलियानी

सोमवार, 30 जनवरी 2017

होसलों की उड़ान को तू देख

एक  दरिया है मीलों तक फैला  हुआ
अपने बाजुओं की ताकत आज़मा धारे न देख

क्यों तू आज इस कदर मायूस सा है
दिल को सब कहने दे सपने तू प्यारे न देख

घर को करले रोशन अंधेरों से न डर
बुझती हुई इस राख में जलते अंगारे भी देख

बून्द टपकी है तो बारिश ही होनी है
इन पक्षियों के होसलों की उड़ान को तू देख
@मीना गुलियानी 

रविवार, 29 जनवरी 2017

हूँ परेशां कैसे दिखलाऊंगा

कभी दिल पे हाथ रखके मेरी बेबसी को समझो
तुमने जिस तरह से चाहा वैसा ही रहा हूँ मैं

कितनी ही चट्टानों से फिसला  कितने तूफानों से गुज़रा
तेरे ही इंतज़ार में इसी जगह पर बैठा रहा हूँ मैं

मैंने तो अपने  घर बैठे ही तबाही का मंज़र देखा किया
जिंदगी जैसे भी गुज़री तेरी वजह सहता रहा हूँ मैं

मै हमेशा  तेरे साथ ही हर कदम पर चलता रहा
तूने मुड़के न देखा यही दर्द सहता रहा हूँ मैं

इतना सारा ग़म भी दिल में जब इकठ्ठा कर लिया
हूँ परेशां कैसे दिखलाऊंगा यही सोच रहा हूँ मैं
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 28 जनवरी 2017

मेरी याद तुमको दिलायेंगे

मेरे ये गीत दिल तुम्हारा बहलायेंगे
मेरे बाद  मेरी याद तुमको दिलायेंगे

                  यह सुनहरी धूप भी चुभती है आँखों को मेरी
                  थोड़ा आगे तुम बढ़ो दिलकश नज़ारे आएंगे

देखो छेड़ा न करो तुम हर समय इस साज़ को
काँपती हुई अँगुलियों से सुर कैसे निकल पाएंगे

                   एक ऐसी बात जो कितनी भली लगती है हमें
                   सुनते ही सीने की धड़कन रबाब वो बन जाएंगे

ऐसी आँधी है आई टूटकर जो हम गिरे
हमसे जुड़े नाम कई सामने फिर आएंगे
@मीना गुलियानी 

रविवार, 15 जनवरी 2017

लम्हे गुज़र न जाएँ कहीँ

थामके बैठो कहीँ ये दिल फिसल न जाए कहीँ
मुझको ये डर है कि तू भी बदल न जाए कहीँ

यूँ तो मुझे खुद पे ऐतबार बहुत है लेकिन
ये बर्फ आँच के आगे पिघल न जाए कहीँ

तेरे मयकदे से जो पी है उसकी खुमारी बाकी है
डर है सारी उम्र इसी नशे में गुज़र न जाए कहीँ

हवा है तेज अभी दरवाजों को बन्द कर लेना
ये बुझती राख शरारों में बदल न जाए कहीँ

धड़कने तेज़ हुई हैं रफ़्ता रफ़्ता तेरे करीब आने से
कहदो इस वक्त से ठहरे लम्हे गुज़र न जाएँ कहीँ
 @ मीना गुलियानी


सोमवार, 9 जनवरी 2017

तोड़ना वायदे को कभी मेरी मरज़ी ही नहीँ

मेरे मेहबूब तू पढ़  ले गर मेरी अर्ज़ी  कहीँ
तोड़ना वायदे को कभी मेरी मरज़ी ही नहीँ

जब भी तेरे इश्क की सितार बज उठेगी
समझ लेना कि तेरी हीर जाग उठेगी

मौत से भी लड़ जाऊँगी तुझसे न दूर जाऊँगी
लहरों से दुबकना नहीँ तूफ़ां से झूझ जाऊँगी

 मौत की परवाह नही लालच की खुदगर्ज़ी नहीँ
जान का डर भी  नहीँ परखने की सिरदर्दी नहीँ
@मीना गुलियानी 

चाबी तू ढूंढ़के लादे खुदा

दिल मेरा जाने कहाँ खो गया
हँसी को भी मैंने आज खो दिया

चन्द्रमा अमावस का कभी पूनम का
कभी घट जाता  है तो कभी ये बढ़ता

दिल के टुकड़े सारे समेटकर  उठाये
बड़े यत्न से उनसे फूलदान सजाये

सुनी चुपचाप मैंने मौसम की सदा
तेरे कदमों में सिर झुकाया ऐ खुदा

तुम्हीं सुन लो मेरे दिल की सदा
खोई है चाबी तू ढूंढ़के लादे खुदा
@मीना गुलियानी 

रविवार, 8 जनवरी 2017

फूल तेरी राहों में बिखराऊँगा

मैं अपनी चाहत के खोये पलों को 
अतीत के सागर से खोज लाऊँगा 

मैं अपनी ग़ज़लों में रंग भरना चाहता हूँ 
बहारों के गीत बाहों में भरके लाऊँगा 

विदाई के सफर में दर्द होता तो है 
वसन्त को मैं मुकाम पे पहुँचाऊँगा 

अपने माथे से मैं उलझन की शिकन 
 रूठे हुओं को मनाकर मैं  मिटाऊँगा 

मेरी आहों की गंध अब न कभी आएगी 
चाहत के फूल तेरी राहों में बिखराऊँगा 
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

तन्हाई न जाने वाली

देखके हालात यूँ ही पशेमान न हो
साथ तेरे सच्चाई नहीँ जाने वाली

हवा का रुख भी आज बदला है
आग ये फिर भी नहीँ बुझने वाली

बारिशें कितनी भी आती जाती रहें
रिश्तों की खाई नहीँ पटने वाली

नाव  तो चलती रहेगी यूँ दरिया में
बिना पतवार नहीँ पार उतरने वाली

कौन सुनेगा बन्द कमरे में आवाज़ तेरी
इन दरीचों की खिड़की नहीँ खुलने वाली

दिल की हालत को बदल के देख ज़रा
चन्द नगमों से तन्हाई न जाने  वाली
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

ऐसा हमदर्द नहीँ है

ज़िन्दगानी का कोई मकसद ही नहीँ है
इस इमारत में कोई गुम्बद ही नहीँ  है

पेड़ तो खूब हैं तेरे इस बगीचे में
शीतल छाया दे जो बरगद नहीँ है

तुमको देखके यूँ महसूस हुआ है मुझको
देखने मैं जो चला था वो अमजद नहीँ है

अब न बाकी रही हमारे पैरों तले ज़मीन
ये बात और है जिस्म में जुम्बिश नहीँ है

यूँ तो गुज़रे हैं मेरे कूचे से आमज़द कई
जो  तिश्नगी मिटादे ऐसा हमदर्द नहीँ है
@मीना गुलियानी 

अनन्त में लीन होना ही उद्देश्य सारा

मेरे अन्तस् में भी एक नदी की धारा है बहती
जो निरन्तर सागर से मिलने को ही है कहती

न जाने कब तक वो उस तलहटी की चट्टानों में
टकराकर वीरान राहों में ढूंढेगी रास्ता तूफानों में

जाने कब तक ये प्यासी आँखे इन राहों में बरसेंगी
तुझसे मिलने के लिए इस पार कब तलक तरसेंगी

आवेग होता है क्षणिक भर फिर व्याकुल वो होती  हैं
सागर की ओर वो बढ़ती फिर उसमें विलीन होती हैं

यही घटनाक्रम है चलता शायद यही होती  है जीवन धारा
अहम विलोपित कर अनन्त में लीन होना ही उद्देश्य सारा
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

होले से फिर मुस्काते

मिलते हैं कुछ बेगाने जो हो जाते हैं अपने
याद आते हैं ताउम्र फिर बनके मीठे सपने

बांधे रहते हैं हमेशा सहेजे रखते हम उनको
जिगर में जो अटके रहते कैसे भूलें हम उनको

अरमान हैं जो इस दिल के दिल में ही दफन होते हैं
गहराई है जितनी दिल की उतने ही सपन होते हैं

कभी बन जाते हैं हकीकत कभी सपनों में वो आते
हम जब चुपचाप हो बैठे कानों में वो कुछ कह जाते

अपनी वो मौन भाषा में जाने  क्या वो कह जाते
हम आँख मूंदकर अपनी होले से फिर मुस्काते
@मीना गुलियानी