गुरुवार, 5 जनवरी 2017

ऐसा हमदर्द नहीँ है

ज़िन्दगानी का कोई मकसद ही नहीँ है
इस इमारत में कोई गुम्बद ही नहीँ  है

पेड़ तो खूब हैं तेरे इस बगीचे में
शीतल छाया दे जो बरगद नहीँ है

तुमको देखके यूँ महसूस हुआ है मुझको
देखने मैं जो चला था वो अमजद नहीँ है

अब न बाकी रही हमारे पैरों तले ज़मीन
ये बात और है जिस्म में जुम्बिश नहीँ है

यूँ तो गुज़रे हैं मेरे कूचे से आमज़द कई
जो  तिश्नगी मिटादे ऐसा हमदर्द नहीँ है
@मीना गुलियानी 

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