शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

अब बोल दे न मुझसे छिपा

तुम्हारे बगैर कुछ अच्छा नही  लगता है
दिल मेरा यूँ ही उड़ा उड़ा सा रहता है
              पूरा घर इक नुमाइश सा लगता है
              एक तूफ़ान सा दिल में उमड़ता है
मैं इन सितारों से बात करता हूँ
रौशनी इनसे घर में करता हूँ
                 कभी इनको तेरी जुल्फों में टांगता हूँ
                 कभी इनसे शामियाने को सजाता हूँ
हर पल तुझसे ही बातें करता हूँ
तेरे ही ख़्वाब बुनता रहता हूँ
              बस एक झील का किनारा है
               इसमें डूबा मेरा जहां सारा है
कैसे खोजूँ मैं अपना दिल ये बता
तू ही अब बोल दे न मुझसे छिपा
@मीना गुलियानी 

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