बुधवार, 1 मार्च 2017

मेरे मन में थी समाई

उसने अपनी गर्मजोशी अपनी मुस्कान से दिखाई

अपनी सुंदर छवि  मेरे दिल में व्यवहार से बनाई

एक अनूठी सी छाप दिल में बनाई

मेरी कल्पना में वो  उतरती सी आई

मेरी कविता  के बोलों में वो आ समाई

मेरे दिल की धड़कनों में बजने लगी शहनाई

लिखता था गीत मैं वो गाने लगी रुबाई

तहरीर लिखी मैंने लिखावट थी उसकी आई

दिलकश थे सब नज़ारे इक घटा सी छाई

 लगा धरती पे इक चन्द्रकिरण उतर आई

अपनी  सितारोँ की ओढ़नी उसने झिलमिलाई

उसकी रौशनी में मेरी काया यूँ जगमगाई

संगेमरमरी बदन से चिलमन उसने उठाई

उसकी वो हर अदा  मेरे मन में थी समाई
@ मीना गुलियानी


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