बुधवार, 26 अप्रैल 2017

वाणी मूक न होने की

उठो मनुज  पुत्रो अब जागो घड़ी नहीं ये  सोने की
तुम पर टिकी हैं  निगाहें आशाओं के पूरे होने की

तुममें सृजन शक्ति है कण कण में  भण्डार भरा
जीवन को तुम पहचानो देश है किस  मोड़ खड़ा
मोड़ दो इसकी धारा तुम घड़ी नहीं ये खोने की

सबको इस संसार में केवल स्वार्थ नज़र ही आता है
कैसे सुखी बने ये मानव ध्यान नहीं ये आता है
तुममें है क्षमता जगाओ हिम्मत मानव होने की

कैसी दुष्प्रवृति की दलदल में फँसी है नूतन पीढ़ी
सुगम बनाओ प्रगति पथ बनाओ इक ऐसी सीढी
संस्कृति का इतिहास बदलो वाणी मूक न होने की
@मीना गुलियानी

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