शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

नाचें और गुनगुनाएँ

शाम है कोहरे में डूबी हुई
समुद्र का किनारा वीरान है
आओ हम तुम गीत गाएँ
जगमगाएँ उदास साँझ है

                       मिल बैठ कर लें मौसम की आहट
                       ठण्डे रिश्तों में भरदें गर्माहट
                      कटुता खत्म करें जी भर जी लें
                      दिल से दिल बात करे होंठ सी लें

जो भी हों शिकवे बिसराएँ सारे
तोड़के लायें आसमाँ से तारे
गहराने लगी शाम कंदीले जलाएँ
आओ झूमें नाचें और गुनगुनाएँ
@मीना गुलियानी 

1 टिप्पणी: