बुधवार, 13 सितंबर 2017

स्मृति पलकों में बन्द रहती है

तुम्हारी स्मृति पलकों में बन्द रहती है
मुझसे वो बातें चन्द करती ही रहती है

कभी पलकों में ये मुस्कुराती है
कभी कभी अश्क भी बहाती है
जाने क्यों फिर भी तंग रहती है
दिल में इक जंग जैसे रहती है

तुमको ये हाले दिल बता देगी
पूछोगे गर तो ये पता देगी
मुझसे शायद नाराज़ रहती है
तभी ये कुछ उदास रहती है

कभी तो हौले से गुनगुनाती है
कभी थपकी देके भी सुलाती है
दिल के हर राज़ बयां करती है
मन में शायद सबसे डरती है

कभी ये लोरियाँ सुनाती है
कभी रूठूँ तो ये मनाती है
कभी आसमाँ से उतरती है
कभी ज़मीं पे पग धरती है
@मीना गुलियानी 

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