गुरुवार, 2 नवंबर 2017

साहिल पा जाती हूँ

तुम मेरी कल्पना में बसते हो
न जाने क्या मुझसे कहते हो

मैं जब कविता लिखती हूँ
तुम अपनी झलक दिखाते हो

कभी तुम सामने आते हो
कभी खुद को छिपाते हो

 जाने कैसा पावन रूप तुम्हारा
उज्ज्वल जैसे अंबर का तारा

सारा ज्ञान तुममें सिमट जाता
ऐसा प्रकाश पुंज तुमसे है आता

मैं खुद ही उसमें डूब जाती हूँ
लगता है साहिल पा जाती हूँ
@मीना गुलियानी

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