शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

अनंत सागर में लीन हो जाती है

मेरे अंतर में भी एक झरना  बहता है
जो रोशनी की किरण की आस रखता है
सागर से मिलने की चाह रखता है
सागर में खो जाने को आकुल रहता है
मगर हवा मेरा रास्ता रोक लेती है
मन दौड़कर हवा से आगे निकलता है
जीवन नदिया की धारा के समान है
जो इठलाती  बलखाती चलती रहती है
जीवन के सपने और हकीकत दो किनारे हैं
 टूट कर इस धारा में मिलने को आतुर हैं
जीवन और नदिया बल खाते हुए मुड़ते हैं
अपनी राह बनाकर जीवन को आयाम देते हैं
अंत में नदिया अनंत सागर में लीन हो जाती है
@मीना गुलियांनी 

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