शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

अपनी तस्वीर उकेरता हूँ

अपनी किताब का पन्ना पलटता हूँ
एक और बसंत सा खिलता है
झरना सा झरने लगता है मुझमें
और मेरे मन के इस उपवन में
अनगिनत रंगों के फूल खिलते हैं
बारिश की बूँदें पत्तों पर गाती हैं
फूलों की खुशबु मन को लुभाती है
सुख दुःख की व्यथा भी सुनाती है
तन्हाई की यादें आँसुओं में ढलती हैं
मेरी अँगुलियाँ रेत पर थिरकती हैं
जिस पर अपनी तस्वीर उकेरता हूँ
@मीना गुलियानी 

3 टिप्‍पणियां: