मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

करना चाहती हूँ

मैं अपने अन्तर  के
अन्धकार को भेदकर
प्रकाश पुंज को
पाना चाहती हूँ
इड़ा पिंगला सुषुम्ना
का संगम मैं स्वयं
खुले नेत्रों से
देखना चाहती हूँ
अनहद का नाद
सुनना चाहती हूँ
त्रिकुटी के अमृत
का स्वाद भी
चखना चाहती हूँ
उस अनन्त में
 खुद को विलीन
करना चाहती हूँ
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें