मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

फिर से सपने बुनने लगी

दिन ढलने लगा रेत सा
वक्त फिर फिसलने लगा
तुम्हारा  स्निग्ध स्पर्श पाकर
मन फूल सा खिलने लगा
तुमसे कुछ माँगा नहीं मैंने
कभी कुछ चाहा नहीं मैंने
बस तमन्नाओं में ही मेरा
वक्त यूँ गुज़रने लगा
हर वक्त तुम्हें देखने का
तुम्हें पुकारने ढूँढने का
मेरा मन करता रहता
तुमने जब हाथ पकड़ा
उस स्पर्श की सिहरन से
दिल का साज़ बजने लगा
तेरे दर्द की कसक मेरे
दिल में जगने लगी
बंद आँखों में भी दिल के
एहसास जगने लगे और
फिर से सपने बुनने लगी
@मीना गुलियानी 

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