बुधवार, 12 सितंबर 2018

उसकी बलैंया लेती जाती

ये सुरमई शाम सुहाने झरने
कल कल बहता है पानी
ये हवा मदमस्त सी दीवानी
आई है रुत ये मस्तानी
नभ पर सितारे भी चमके
लगता है जुगनू जैसे दमके
खगवृन्द भी पंक्तिबद्ध आते
खुले व्योम में वो छा जाते
गाय चरकर शाम को आती
 कुमुदिनी देखो खिल जाती
चन्द्रमा भी गगन में निकला
चाँदनी को भी संग में लाया
 सितारों की ओढ़नी लहराती
जुल्फ़ें बादल सी बन जातीं
घटा में बिजुरिया चमक जाती
चाँदनी फिर पायल छनकाती
हिमकणों का मुकुट पहनती
मणिमेखला करधनी लटकाती
लगती वो स्वर्ग की अप्सरा सी
चले लज्जाती सकुचाती बलखाती
धरती उसकी बलैंया लेती जाती
@मीना गुलियानी

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