शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

प्रात: से हो रही थी

नव प्रभात वेला में उषा ने अँगड़ाई ली
अलसाई हुई मुंदी अपनी आँखें खोली
फिर उठकर वो जल भरने पनघट गई
पहले  नदी में स्नान किया सद्य स्नाता
धवल वस्त्रों में ही नदी से बाहर निकली
खुले घुंघराले केश मुक्ताकण लुटा रहे थे
सूरज रश्मियों को न्यौछावर करने लगा
वातावरण पक्षियों के कलरव से गूँज उठा
फूलों की सुगन्ध मन प्रफुल्लित कर रही थी
उषा ने सर पर  रत्नजड़ित मुकुट पहना
बालों में गजरा लगाया कर्णफूल सजाए
कुंकुम लगाया स्वर्ण कंगन मुक्ताहार पहना
धरा पर धन धान्य की वर्षा हाथों से की
धरा प्रमुदित होकर खुशियाँ समेटने लगी
मंदिरों में घंटा घड़ियाल शंखनाद होने लगे
मंगला आरती के लिए जनता उमड़ पड़ी
देवगण भी गगन से पुष्पवर्षा करने लगे
भक्तगण भावविभोर होकर स्तुति करने लगे
ढोलक नगाड़े की धुन पर भक्त  झूमने लगे
प्रभु के दर्शनों की शोभा अनिवर्णीय थी
भक्तगण  स्वयं को धन्य मानने लगे
ईशकृपादृष्टि उन पर प्रात: से हो रही थी
@मीना गुलियानी


1 टिप्पणी: