सोमवार, 26 नवंबर 2018

अगाध की ओर

विधाता ने रचा
उसे प्रेम से
कल्पना से
कामना से
फ़ुरसत में
वह  मुझमें  है
उसकी हँसी
कुसुमित होती है
पलाश में
अमलतास में
हेमंत में
वसन्त में
बढ़ती जाती है
अगाध की ओर
@मीना गुलियानी 

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