बुधवार, 22 मई 2019

सब बिखरा होता

सारा दोष हमारा ही था
न तुम्हें दिल में बसाया होता
न ही पलकों में छिपाया होता
न ख़्वाबों में ही बुलाया होता
न सपनों का महल बनाया होता
न काँच सा वो सब बिखरा होता
@मीना गुलियानी 

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