मन का हर भेद कितना गहरा हो
चाहे प्रीत को दफना दो गहराई में
फ़िज़ा को ये प्रीत महका ही जाती है
मन की बात मुँह में चाहे न कहो
पर वो अश्रुधारा से फूट आती है
अब तो घटाएँ बिजलियाँ गिराती हैं
@मीना गुलियानी
चाहे प्रीत को दफना दो गहराई में
फ़िज़ा को ये प्रीत महका ही जाती है
मन की बात मुँह में चाहे न कहो
पर वो अश्रुधारा से फूट आती है
अब तो घटाएँ बिजलियाँ गिराती हैं
@मीना गुलियानी
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