बुधवार, 27 मई 2020

किस्मत अच्छी थी -कहानी

मुझे अक्सर दिल्ली किसी न किसी काम से जाना ही पड़ता है।  वैसे तो मेरा पीहर भी वहीँ है तो इसी बहाने सबसे मिलना भी हो ही जाता है।   वैसे तो हर बार टिकिट पहले से ही रिज़र्व करवा लेती हूँ लेकिन एक बार अचानक ही जाना पड़ा तो टिकिट भी लेनी थी और जाने में देरी भी हो रही थी।   मैंने कैब बुक कराई तो वो बीस मिनट तक तो आई ही नहीं।   आखिर हारकर मैंने बेटे को जगाया कि अब तो सिर्फ बीस मिनट में गाड़ी भी गाँधी नगर पहुँच  जायेगी तो मेरी डबल डैकर ट्रेन नहीं मिल पायेगी वो जल्दी से नीचे उतरा और गाड़ी स्टार्ट की  और पूरे बारह मिनट में हम गाँधी नगर स्टेशन पर पहुँच गए।    उसी ने फुर्ती से टिकिट भी ली और मुझे ट्रेन में सवार करा  दिया। 

  यह तो किस्मत अच्छी थी जो समय पर स्टेशन पहुँच गए थे नहीं तो गाडी छूट ही जाती।   अब जब दो दिन के बाद मुझे दिल्ली से वापिस आना था तो टिकिट तो मैंने जयपुर के लिए बुक करवा ली थी। शाम को सराय रोहिल्ला से करीब साढे पाँच के आसपास दिल्ली से जयपुर के लिए रवाना होती है।   उस दिन  दुर्गा पूजा की मूर्तियों को बंगाली लोग विसर्जन हेतु  लेकर जा रहे थे तो इस वजह से बहुत जाम लगा हुआ था।   घर से तो मैं बहुत जल्दी ही निकल पड़ी थी।मुझे बहुत ही घबराहट होने लगी थी जाम को देखकर पता नहीं समय पर पहुँच भी पाऊँगी या नहीं।यह तो किस्मत अच्छी थी कि  रास्ते में जाम होने के बावजूद  बिल्कुल समय पर पहुँची।  मेरे प्लेटफार्म की सीढियाँ उतरते ही गार्ड ने सीटी भी बजा दी और मैं जल्दी से ईश्वर का नाम लेते हुए चढ़ गई। 

  इस बार पहली बार ही मेरे साथ ऐसा हुआ कि  आते और जाते दोनों समय मेरी किस्मत अच्छी थी जो मुझे गाड़ी मिल गई।  वैसे तो मेरा यह नियम है कि कहीं भी जाना हो तो वक्त से कम से कम 20 -25 मिनट पहले ही पहुँचती हूँ। इस यात्रा के बारे में तो मैंने सभी को बताया था कि भगवान हमेशा ही साथ देता है और उनकी ही कृपा से किस्मत ने भी उस दिन मेरा साथ दिया जो समय पर पहुँच गई।  

@ मीना गुलियानी 

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