मंगलवार, 5 मई 2020

वो भयानक रात -- कहानी

हम लोग एक शादी में गए थे।  लौटते हुए काफी रात हो चली थी तो हमने सोचा रात का सफर क्यों करें।  यहीं पास में देख लेते हैं कोई रहने को विश्राम गृह मिल जाए तो रात बिता लेंगे सुबह यात्रा कर लेंगे।   करीब एक किलो मीटर दूर चलने पर ही हमें एक विश्राम गृह नज़र आया।   गाडी में कुल चार ही लोग थे।  गाड़ी को खड़ा किया और सामने से वहाँ का चौकीदार हाथ में लालटेन लाता हुआ दिखाई दिया।   हमने उससे पूछा भाई यहाँ रात ठहरने के लिए एक कमरा मिल जाएगा।  उसने सर हिलाकर हामी भरी।   उसका चेहरा कुछ हमें डरावना सा लगा पर हमने अपने मनोभाव को व्यक्त नहीं होने दिया।   उसने कमरा खोलकर दिखाया।   ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई बरसों से यहाँ वो खाली पड़ा हो।  कमरे में जगह जगह पर मकड़ी के जाले थे।  खिड़की को खोला तो बाहर सन्नाटा पसरा था।  सांय सांय जैसी आवाजें आ रही थीं।   तभी पंखे के ऊपर से मंडराती हुई कोई चमगादड़ आती हुई दिखी।   हम लोग ये सब देखकर अचानक घबरा से गए।  थोड़ी देर में वो चौकीदार दुबारा आया बोला - दरवाज़े अंदर से बंद करके सोना खिड़की भी बंद रखना।  कुछ चाहिए तो मुझे बता दो।  हमने कहा अभी तो कुछ नहीं चाहिए सुबह बात करेंगे।  वो चला गया हमने भी सभी दरवाज़े खिड़कियाँ अंदर से बंद कर लीं
और बती बुझाकर लेट गए।  अभी आधा घंटा ही बीता होगा कि ज़ोर जोर से किसी के हँसने की आवाज़ें सुनाई दीं।   फिर ऐसा लगा कि जैसे कोई कमरे के बाहर टहल रहा हो।   कभी अगरबत्ती जैसी खुशबु आती तो कभी चमेली जैसी महक से कमरा भर जाता।   तभी दरवाज़े ज़ोर ज़ोर से खड़कने लगे।  मैं तो डर  से थर थर कांपने लगी और मैंने हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरू कर दिया।     थोड़ी देर के बाद पायल सी बजती सुनाई दी और ऐसा लगा कोई खूबसूरत सी लड़की अपने प्रेमी के साथ खिलखिलाकर किसी बात पर हँस रही हो।   मैंने इनको जगाया और बोला बाहर कोई है।   वो तो मुझे कहने लगे ये तुम्हारा वहम है कोई भी आवाज़ मुझे नहीं आ  रही।  तुम आराम से सो जाओ।  थोड़ी देर के बाद मुझे भी पता नहीं कब झपकी सी आ गई।  फिर देखा तो सुबह हो गई थी।  वो चौकीदार आया और दरवाजे  की घंटी बजाकर पूछा।   आप चाय लेंगे सुबह हो गई है।   हमने कहा जरूर, तो वो चार कप चाय बनाकर ले आया।   फिर उसने हमसे पूछा आपको रात को अच्छी तरह से नींद तो आ गई थी।  मैंने कहा  मुझे कुछ आवाज़ें आई थीं जिनकी वजह से अच्छी तरह से सो नहीं पाई। 

उसने बताया तब तो आपने मंजु बिटिया और शेखर की आवाज़ें सुनी होंगीं।   दोनों बहुत प्रेम करते थे।  अलग जाति बिरादरी का होने के कारण हमारे मालिक को यह पसंद नहीं था उन्होंने उनको बहुत ही फटकारा था।   जो उन दोनों को बहुत बुरा लगा था।   दोनों ने ही हवेली के कुएँ में ही डूबकर आत्महत्या कर  ली थी।   तबसे ये हवेली को मालिक ने विश्राम गृह में बदल दिया।   कभी कभार भूले भटके से कोई आ जाता है रात को आकर ठहरकर सुबह चला जाता है। उन दोनों की आत्माएँ इसी हवेली में भटकती रहती हैं।   मंजू बिटिया बहुत ही खूबसूरत थी बहुत होनहार थी।  पता नहीं किसकी नज़र लगी जो असमय ही विदा हो गई।  कहते कहते वो खुद भी भावुक हो गया था।   खैर अब हम चाय पीकर बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठ गए और जयपुर के लिए रवाना हुए।   आज भी वो डरावनी रात की यादें कभी दिमाग में आती हैं तो पूरे शरीर में सिहरन सी होती है।  यह रात मेरी स्मृति पटल पर ताज़ा बनी रहती है।
@मीना गुलियानी 

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