बुधवार, 20 मई 2020

कितनी परछाईयाँ उभरती हैं

जब तुम सुनसान पथ से
रात के अंधेरों में ग़ुज़रते हो
इन वीरानियों में से न जाने
कितनी परछाईयाँ उभरती हैं
बस तेरी रहगुज़र  बनती हैं
चैन से वो रहने नहीं देती हैं
मेरे दिल को घायल करती हैं
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें