रविवार, 17 मई 2020

वो जो एक अधूरी सी बात बाकी है --कहानी

आज रमा को आफिस  नहीं जाना था फिर भी वो रोज़ की तरह ही जाने के लिए तैयार हो गई।   राजेश ने पूछा कि कहाँ जाना है आज तो तुम्हारी छुट्टी है।  रमा ने बोला आज आफिस में कुछ हिसाब किताब का पेन्डिग काम को निपटाना है इसलिए बॉस से सबको बुलवाया था।   राजेश ने कहा -चलो फिर मैं रास्ते में तुमको छोड़ता हुआ आगे निकल जाऊँगा।   आज मुझे भी कहीं जाना था। रमा ने कहा ठीक है।   राजेश रमा का भाई था रमा उससे दो साल बड़ी थी।  रमा के माता पिता उसके लिए लड़का खोज रहे थे पर कोई ढंग का नहीं मिल रहा था। कई लोग तो दहेज की मांग कर रहे थे जिसके लिए रमा के माता पिता जी तैयार नहीं थे।   जो लोग खुद ही दहेज की मांग करते हैं उन लोगों को वो अच्छा नहीं समझते क्या पता बाद में बेटी को और भी ज्यादा परेशान करें।  उसके ऑफिस में भी राकेश नाम का एक मैनेजर की पोस्ट पर सुंदर व्यक्ति कार्यरत था।   वो भी रमा से प्रभावित था क्योंकि वो खूबसूरत होने के साथ ही साथ हर कार्य में दक्ष थी।   समय पर आना जाना सादगी और शालीन स्वभाव था रमा का जो एक अच्छे युवक को प्रभावित करने के लिए काफी था। सबसे बहुत ही विनम्रता पूर्वक बात करती थी।   अपने लैपटॉप पर कार्य करते हुए दिन में कितनी बार राकेश  नज़रें घुमाकर रमा को देख लेता था।

एक दिन बस स्टाप पर काफी देर तक प्रतीक्षा करते हुए रमा की बस नहीं आई तो राकेश उधर से अपनी कार से गुज़र रहा था उसने रमा को देखकर कार रोक ली और बैठने को कहा पहले तो रमा थोड़ा हिचकिचाई फिर राकेश के दुबारा अनुरोध करने पर बैठ गई।   राकेश ने भी रमा से इधर उधर की बातें शुरू करते हुए फिर उसके घर के सब सदस्यों के बारे में पूछा।   रमा ने भी कुछ नहीं छिपाया सब स्पष्ट बता दिया।   राकेश ने भी बातों बातों में पूछा कि क्या तुम मुझे इस लायक समझती हो कि तुम्हारा हाथ मांग सकूँ।   राकेश के माता पिता खुले विचारों के लोग थे।  राकेश उनका इकलौता बेटा था और उसी की पसंद की लड़की से ही उसकी शादी करना चाहते थे।  रमा ने धीरे से सिर हिला दिया जो उसकी मौन स्वीकृति का प्रतीक था कि उसे राकेश पसंद था।   अब रमा का घर आ चुका था।   रमा ने कार से उतरकर राकेश से अंदर आने को बोला।   राकेश ने कहा फिर किसी रोज़ आऊँगा और तुम्हारे हाथ की बनी हुई चाय भी पियूँगा।   रमा मुस्कुराकर अंदर आ गई।  राकेश ने भी अपने घर की और गाड़ी घुमा ली।  राजेश भी अपने ऑफिस से आ चुका था।   वो भी रमा से राकेश के बारे में पूछने लगा।   उसे भी राकेश एक सज्जन व्यक्ति लगा।

रमा के पिताजी किसी की दुकान में काम करते थे।   वेतन भी न के बराबर ही था पर इतना भरा पूरा परिवार वो संभाल रहे थे। रमा की माताजी को अस्थमा की बीमारी थी।   रमा को तो ऑफिस से आकर घर की व्यवस्था  भी देखनी पड़ती थी ।   रमा की एक सहेली शीला  थी उससे अपने भाई के रिश्ते की बात चलाने की बात की। शीला भी राजेश को मन ही मन पसंद करती थी वो गरीब घर की लड़की थी पर उसके अच्छे संस्कार थे।   रमा ने राजेश से पूछा अगर वो तुम्हें पसंद है तो उसकी  मम्मी को अपनी मम्मी से मिलवा दूँ।   राजेश ने कहा लड़की तो ठीक है पर पहले तुम अपनी शादी की बात तो कर लो राकेश से पूछकर हम लोग उनके घर बात करने चले जायेँगे।  दूसरे दिन जब रमा ऑफिस गई तो राकेश उसी का इंतज़ार कर रहा था। उसने रमा से पूछा कि कब मैं अपनी माताजी पिताजी को तुम्हारे घर बात करने के  लिए भेज दूँ।   रमा बोली जब आप चाहो तो राकेश ने कहा फिर ठीक है कल रविवार है कल ही हम लोग चाय पीने आयेंगे।  रमा ने कहा ठीक है।  दूसरे दिन शाम को राकेश अपने माता पिताजी के साथ उनके घर पहुँचे।   रमा ने सादर प्रणाम किया और रसोई में जाकर चाय और पकौड़े बना दिए।  हलवाई से थोड़ी मिठाई तो मंगा ही रखी थी जिसे पकौड़ो के साथ ही परोस दिया।   सभी चाय की चुस्कियों के साथ रमा की तारीफ़ कर  रहे थे। राकेश की माताजी ने रमा की माता जी से राकेश के रिश्ते की बात चलाई।   रमा की माताजी कहने लगी की हम तो दहेज नहीं दे पायेंगे सिर्फ ये गुणवान बेटी ही है जो जिस घर में जायेगी उजाला कर देगी।  राकेश की माता जी ने कहा हम तो सिर्फ आपकी लड़की को चाहते हैं क्योंकि हमारा बेटा भी उसे पसंद करता है। रमा की माताजी ने कहा फिर तो पंडित जी से पूछकर कोई अच्छा सा मुहूर्त निकलवा देंगे।    अब रमा को अपने भाई की शादी के बारे में शीला के माताजी पिताजी से मिलवाने के लिए शीला से बात करके पूछा कि हम लोग कब उनके घर आएँ। ज्यादा  दिनों तक उनको भी इंतज़ार नहीं करना पड़ा।   वो भी अगले रविवार को शीला के घर रिश्ते की बात करने गए।   रमा ने शीला जी की माताजी से औपचारिक रूप से बात कर रखी थी इसलिए ज्यादा भूमिका बाँधने की जरूरत नहीं पड़ी।   दोनों ही मध्यम वर्ग से संबंध रखते थे इसलिए सरलता से ही बात बन गई।   अब तो तक खाली तारीख निकवाना बाकी रह गया था।  रमा भी खुश थी  क्योकि उसकी सहेली उसकी भाभी बनकर आ रही थी। 

अब राकेश और रमा भी थोड़ा आपस में घुलमिल गए थे क्योंकि दोनों परिवार रजामंद थे इस रिश्ते से। अब तो अक्सर छुट्टी के दिन राकेश और रमा कभी फिल्म देखने तो कभी बाहर खाना खाने चले जाते थे या किसी बाग़ वगैरह में जाकर समय बिताते थे।   राजेश और शीला भी थोड़ा बहुत घूम फिर लेते थे लेकिन शीला राजेश से कहती थी की मेरा मन तो करता है की हम लोग घर पर ही बैठकर कुछ अच्छा खाना बनाएँ।   राजेश मान गया और  जो लिस्ट शीला ने लिखकर दी वो सामान लेकर आ गया।   अब शीला ने सबके लिए खाना बनाया सबको बहुत ही अच्छा लगा.  राजेश की माताजी तो उसकी प्रशंसा करते हुए नहीं थक रही थी कि शीला सिर्फ सुंदर ही नहीं गुणवान भी है।   ऐसे ही राकेश के घर रमा ने भी अपने हाथों का जादू बिखेरा और सबको खूब अच्छा स्वादिष्ट खाना खाने को मिला।   राकेश की माताजी बहुत प्रसन्न थी कि राकेश ने योग्य बहू का चयन किया है।  राकेश ने एक दिन फिल्म देखते हुए रमा को किस करना चाहा तो रमा ने धीरे से अस्वीकार किया यह कहकर कि यह सब तो शादी के बाद ही होगा उससे पहले नहीं।   राकेश भी राजी था क्योंकि इससे रमा की इज्जत उसकी आँखों में और भी बढ़ गई थी कि कितने अच्छे संस्कार हैं।   आखिर अब वो घड़ी आ गई जिसका सबको इंतज़ार था।   पंडित जी ने दो सप्ताह के बाद शादी का मुहूर्त निकाला था।  पहले राकेश और रमा की शादी और उसके बाद अगले दिन राजेश और शीला की शादी।   दोनों ही विवाह सादगी से बिना  कोई दहेज़ लिए सम्पन्न हो गए।   अब राकेश रमा से कहा आज तो हमारी साडी भी हो चुकी है आज तो अपनी वो अधूरी वाली बात को पूरा करो। .  रमा ने पूछा कौन सी बात उसके तो दिमाग से भी उतर चुकी  थी वो 'किस' वाली बात।   यह सुनकर रमा ने लज्जाते हुए अपना सिर झुकाया और अपना मुँह राकेश के सामने कर दिया।   राकेश ने उसके माथे को चूम लिया और अपनी बाहों में भर लिया। 

दूसरे दिन शीला और राजेश की भी शादी हो गई और वो भी दोनों परिवार अपना जीवन ख़ुशी ख़ुशी बिताने लगे।
@मीना गुलियानी



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें