गुरुवार, 4 जून 2020

एक दरवाज़ा

एक दरवाज़ा मैंने हरीश के घर हमेशा बंद सा देखा था।  कितनी बार उसके घर मेरा जाना हुआ पर हमेशा ही चाय पीकर आ जाती थी।  दरवाजे के ऊपर एक झालरनुमा पर्दा टंगा रहता था।  बहुत ही खूबसूरत सा दिखता था। हमेशा ही उसके घर का वो दरवाज़ा मुझे आकर्षित करता था।  किसी से कुछ पूछने का साहस ही कभी नहीं हुआ। एक दिन कुछ अजीब सा एक वाक़या उनके घर हुआ।  एक काली बिल्ली जो दिखने में डरावनी सी लग रही थी एकदम से वो मेरे पास पड़े स्टूल पर आकर कूदी।   मैं तो एकदम घबरा ही गई थी। मेरे हाथ से चाय का प्याला लगभग टूटने ही वाला था।  किसी तरह बचा लिया था।

घर के बाकी लोगों ने भी इसका एहसास किया था पर वो लोग नज़र अंदाज़ कर गए।   मैंने हरीश से बात करी कि क्या था।   उसने कहा  ऐसा तो कुछ भी ख़ास नहीं मैं तुम्हेँ फुरसत में बताऊंगा।   एक दिन हरीश ने बताया कि उसकी एक छोटी बहिन थी जिसका किसी कार से दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।  उसका अच्छी तरह से दाह संस्कार नहीं हो पाया था।   उस दरवाजे के पीछे वाला कमरा उसकी बहिन  का था जो हमेशा बंद ही रहता था। कभी कभी उस कमरे में से उसके चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई देती थीं।

कई लोगों से उसके परिवार वालों ने पंडितों से पूजा हवन करवाए थे।   उनके अनुसार तो पूजा उसकी छोटी बहिन की आत्मा को अभी मुक्ति नहीं मिली थी।  उसके लिए ही वो लोग रोज़ कुछ अनुष्ठान करवाते रहते थे। मुझे तो यह सब देखकर बहुत अचम्भा भी हुआ कि इस ज़माने में भी लोग इतना अंध विश्वास करते हैं।  एक दिन फिर से वो काली बिल्ली मुझे दुबारा से उनके घर दिखी वो घूर रही थी।   कमरे की लाइट भी अपने आप जलने बुझने लगी उन्होंने उस रोज़ किसी तांत्रिक को बुलाया था।  उसने कुछ मंत्र पढ़कर उस बिल्ली के ऊपर कुछ दाने फेंके तो ऐसा लगा जैसे वो तड़पने लगी हो।  फिर गोल गोल चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ी।   उस तांन्त्रिक ने बोला अब उसकी आत्मा आप लोगों को परेशान नहीं करेगी।   उसने फिर उस कमरे का दरवाज़ा भी खुलवाया। मंत्र पढ़कर कुछ दाने उस कमरे में भी बिखेर दिए।   अब लगा जैसे कुछ धुआँ सा गोल आकार में ऊपर उठकर खिड़की के रास्ते से घर के बाहर चला गया था।   उस तांत्रिक के अनुसार उसे मुक्ति मिल चुकी थी।

फिर वो दरवाज़ा अब बंद नहीं हुआ हमेशा खुला ही रहता था।  कभी वो काली बिल्ली भी नज़र नहीं आई। इसे देखकर मुझे भी लगा कि व्यक्ति की आत्मा का जब तक दाह संस्कार न हो तब तक उसे मुक्ति नहीं मिलती और उसकी आत्मा भटकती रहती है।   अब तो उस दिन के बाद से मेरा जब भी हरीश के घर आना जाना हुआ तो दरवाज़ा खुला रहने के कारण कोई डर नहीं लगा।  सब सामान्य लगने लगा था। 
@मीना गुलियानी 

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