नहीं तो कहना है असम्भव कायर के लिए तो सम्भलना
सिर्फ पुरुषार्थी ही कर पाते हैं हर परिस्थिति का सामना
जो कुछ भी दम्भ करते हैं वो तो निराश ही होते हैं लेकिन
जो भवण्डर आने पर भी पतवार से नाव खेते हैं वो ही
सागर के उस पार तक उतर पाते हैं मंजिल को पाते हैं
दम्भी लोग तो अपना सर धुनते हैं पछताते ही हैं
@मीना गुलियानी
सिर्फ पुरुषार्थी ही कर पाते हैं हर परिस्थिति का सामना
जो कुछ भी दम्भ करते हैं वो तो निराश ही होते हैं लेकिन
जो भवण्डर आने पर भी पतवार से नाव खेते हैं वो ही
सागर के उस पार तक उतर पाते हैं मंजिल को पाते हैं
दम्भी लोग तो अपना सर धुनते हैं पछताते ही हैं
@मीना गुलियानी
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