मुझे स्वीकार कर लो
कहती है हमको धरती
सूर्योदय की ये लाली
कितने ही फूल खिलाएगी
कितने ही श्रम धान्य
उगाकर मानवता पाठ
पढ़ाएगी धूमिल पड़े भविष्य
जिनको वो न बिसरायेगी
@मीना गुलियानी
कहती है हमको धरती
सूर्योदय की ये लाली
कितने ही फूल खिलाएगी
कितने ही श्रम धान्य
उगाकर मानवता पाठ
पढ़ाएगी धूमिल पड़े भविष्य
जिनको वो न बिसरायेगी
@मीना गुलियानी
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