रे मन अब तो चेत रे बिरथा जन्म न जाये
काहे को तूने महल बनाया चार दिनों का देस रे
कोड़ी कोड़ी माया जोड़ी कपट का धरकर भेस रे
रैन दिवस तूने यूं ही गवाए भूल गयो निज भेस रे
चेत सके तो चेत रे बन्दे क्या होवे चुग जाये खेत रे
हाड मांस की काया तेरी प्रीत कीन्हि किस हेत रे
अब रोने से क्या होवेगा काल ने पासा दिया फेंक रे
चार कहार तुझे लेने आये छोड़ चला परदेस रे
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