सोमवार, 18 मई 2015

गुरुदेव के भजन 328 (Gurudev Ke Bhajan 328)



तर्ज---------परदेसियों से न 

दुनिया है बन्दे मुसाफिर खाना 
किसी का है आना यहाँ किसी का है जाना 

इस दुनिया में कोई न तेरा 
घड़ी दो घड़ी का है ये बसेरा 
अमर रहा न यहाँ किसी का ठिकाना-------- दुनिया है बन्दे मुसाफिर खाना

इस दुनिया के झूठे झमेले 
विषय विकारों के लगे यहाँ मेले 
विषयों में तू न मन को लगाना-------------- दुनिया है बन्दे मुसाफिर खाना

इस दुनिया के छोड़ के धंधे 
बाबा की शरण में आ जा रे बन्दे 
बाबा ने ही है तुझे पार लगाना ----------------दुनिया है बन्दे मुसाफिर खाना


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