शिखरिणी ;-
लक्षण :- सदा से है भाती य म न स भ ला गा शिखरिणी
व्याख्या :-
यह सम-वार्णिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में यगण , मगण, नगण , सगण
भगण और अन्त में लघु , गुरु होते है। अत: इसमें क्रमश: 17 -17 वर्ण होते है।
उदाहरण :-
छटा कैसी प्यारी , प्रकृति तिय के चन्द्रमुख की
नया नीला ओढ़े वसन चटकीला गगन का
ज़री सल्मा रूपी , जिस पर सितारे सब जड़े
गले में स्वर्गगा , अति ललित माला सम पड़ी
व्याख्या :-
उपर्युक्त छंद में क्रमश: 17 -17 वर्ण है। इसके प्रत्येक चरण में यगण , मगण ,नगण
सगण , भगण और अन्त में लघु तथा गुरु होने से शिखरिणी छंद है।
लक्षण :- सदा से है भाती य म न स भ ला गा शिखरिणी
व्याख्या :-
यह सम-वार्णिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में यगण , मगण, नगण , सगण
भगण और अन्त में लघु , गुरु होते है। अत: इसमें क्रमश: 17 -17 वर्ण होते है।
उदाहरण :-
छटा कैसी प्यारी , प्रकृति तिय के चन्द्रमुख की
नया नीला ओढ़े वसन चटकीला गगन का
ज़री सल्मा रूपी , जिस पर सितारे सब जड़े
गले में स्वर्गगा , अति ललित माला सम पड़ी
व्याख्या :-
उपर्युक्त छंद में क्रमश: 17 -17 वर्ण है। इसके प्रत्येक चरण में यगण , मगण ,नगण
सगण , भगण और अन्त में लघु तथा गुरु होने से शिखरिणी छंद है।
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