मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

तुम क्यों चले गए



मंमता की डोर तोड़कर तुम क्यों चले गए 
मंझधार नाव छोड़कर तुम क्यों चले  गए 

           सपनो के मीत  मेरे 
           भावोँ के गीत मेरे 
           कम्पन बने ,बने रहे 
           उलझन भी  बन गए 

यौवन के नयन खोले 
अन्तर में प्यार डोले 
जगते ही जगते कैसे 
वरदान सो गए 

           मिलने की आस लिए 
           युग युग से दीप लिए  
           झंझा झकोर आई 
           अंचल में बुझ गए 

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