इक सेज़ सजी फूलों वाली
इक चमन का मालिक हँसता है
इक बाग़ का रोता है माली
इक द्वार पर बजती शहनाई
इक द्वार से अर्थी जाती है
इक मांग में लो सिन्दूर भरा
इक मांग उजड़ती जाती है
इक महफ़िल लो आबाद हुई
इक बज्मे मुहब्बत लुटती है
देकर के उजाला औरो को
इक शमा अचानक बुझती है
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