सोमवार, 6 जून 2016

ये आँखे

ये आँखे रोज़ तुम्हारी यादों का मेला सजाती है
हवाएँ भी रोज़ तुम्हारी खुशबु साथ लेके आती है

तुम्हारी आँखों की नमी  रिसकर
मेरी आँखों में उतर आती है
तुम्हारी अंगुलियाँ बिखेरती बालों को
गुज़री यादो को पिघला जाती है

तमाम वजूद सिमट  जाता है
मेरी संवेदनाओं का आँखों में
बैठो जब तुम मेरे सिरहाने
तन्हाई ख्यालों में सिमट जाती है
@मीना गुलियानी 

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